सरल गीता (श्रीमद्भागवद्गीताको नेपाली पद्यानुवाद, शृङ्खला-४८)
~स्व. पण्डित जीवनाथ उपाध्याय अधिकारी~ न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय। उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मषु।।९।। मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्। हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते।।१०।। वास्ता छैन मलाई कर्म फलको आसक्ति नै लिन्नँ




